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हरड - आयुर्वेद में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान

हरड का महत्त्व 

 

 एक हरड का नित्य सेवन लम्बी आयु देता है,कहा भी गया है क़ी' माँ कभी नाराज हो सकती है परन्तु हरड नहीं।
दो बड़ी हरड (या 3 से 4 ग्राम हरड चूर्ण) को घी में भूनकर नियमित सेवन करने से व घी पीने से शरीर में बल चिरस्थायी होता है ।
- हरड का प्रमुख कार्य है तत्वों को हटा कर हर एक अंग के दोषों को निकाल कर उन्हें शोधित कर उनकी गतिशीलता को बढ़ाना है।
- यह दस्त से पेट के शोधन के बाद दस्त रोकती है।
- हरड दांतों से चबाकर खाने से भूख बढती है।
- हरद भुन कर खाने से तीनो दोषों को ठीक करती है।
- हरड पीस कर खाने से रेचक होती है।
- भोजन के साथ खाने से बुद्धि और बल बढ़ाती है।
- के बाद खाने से अन्न और जल के दोष दूर करती है।
- अधिक पसीना आना , पुरानी सर्दी खांसी , पुराने घाव भरने में लाभकारी।
- मुहासों पर इसे घिसकर कर लगाने से लाभ होता है।
- हरड का मुरब्बा दस्त बंद कर भूख बढ़ता है।

ऋतू अनुसार हरड सेवन-विधि :

निम्न द्रव्य दिये गये अनुपात में मिलाकर प्रात: हरीतकी (हरड) का निरंतर सेवन करने से श्रेष्ठ रसायन के रूप में सभी प्रकार के रोगों से रक्षा करती है और धातुओं को पुष्ट करती है । पेट, आँख, अच्छी नींद, तनाव मुक्ति, जोड़ों के दर्द, मोटापे आदि के लिये इसे उपयोगी पाया गया है, पर पारम्परिक चिकित्सक इसे पूरे शरीर को मजबूत करने वाला उपाय मानते है।

- एक फल ले और उसे रात भर एक कटोरी पानी मे भिगो दे। सुबह खाली पेट पानी पीयेँ और फल को फैंक दें। यह सरल सा दिखने वाला प्रयोग बहुत प्रभावी है। यह ताउम्र रोगो से बचाता है। वैसे विदेशो मे किये गये अनुसन्धान हर्रा के बुढापा रोकने की क्षमता को पहले ही साबित कर चुके हैं। यह प्रयोग लगातार 3 महीने ही करें . 3 महीने के बाद 15 दिनों का अवकाश ले फिर इस प्रयोग को शुरू कर दें.

शिशिर

हरड + पीपर (8 भाग : 1 भाग)

वसंत

हरड + शहद (समभाग)

ग्रीष्म

हरड + गुड ( समभाग)

वर्षा

हरड + सैंधव (8 भाग : 1 भाग)

शरद

हरड + मिश्री (2 भाग : 1 भाग)

हेमंत

हरड + सौंठ (4 भाग : 1 भाग)

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